रायपुर। महंत लक्ष्मी नारायण दास महाविद्यालय गांधी चौक रायपुर के आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ भारतीय शिक्षण मंडल के तत्वाधान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय संस्कृति एवं विरासत में अंतर संबंध पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया । इसमें पंकज तिवारी संयुक्त महामंत्री भारतीय शिक्षण मंडल,  ए. के. श्रीवास्तव प्रोफेसर पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय एवं डॉ. अंबर व्यास प्रांतीय मंत्री भारतीय शिक्षा मंडल तथा डॉ. देवाशीष मुखर्जी प्राचार्य महंत लक्ष्मी नारायण दास महाविद्यालय की विशेष उपस्थिति रही।आयोजन में विषय पर बात रखते हुए मुख्य वक्ता पंकज तिवारी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भारतीय संस्कृति और विरासत के तत्वों से पोषित करने की आवश्यकता है, तभी राष्ट्रीय शिक्षा नीति को वास्तविक धरातल पर उतारा जा सकेगा। उन्होंने कहा कि विश्व गुरु बनने के लिए मेहनत की जा रही है। इसी कड़ी में यह प्रयास भारतीय शिक्षण मंडल की ओर से किए जा रहे हैं । उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति को भारतीय संस्कृति और विरासत से जोड़ने के लिए चार मुख्य बातों पर विशेष जोर देने की आवश्यकता है। इसमें भाषा, वेशभूषा, खेल और आचार-विचार को उनके वास्तविक अर्थों में समझा जाना चाहिए। उनका कहना था कि वर्तमान समय में समाज के अंदर इंग्लिश के तत्वों का मिश्रण हो गया है इसलिए भारतीय संस्कृति की चमक कमजोर पड़ रही है और शब्द नहीं अपनाए जा रहे हैं। श्री पंकज  ने एक उदाहरण देकर बताया कि भारतीय आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति की चमक और धमक जापान और जर्मनी में मौजूद है लेकिन भारत में उपयोगी नहीं समझा जा रहा है जबकि पुरातनकाल में अधिकांश परिवार में स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को स्वीकार किया जाता था।वर्तमान में आयुर्वेद चिकित्सा को अपनाने की आवश्यकता है।नवीन शिक्षा नीति में पाठ्यक्रम में त्याग और तपस्या जैसे शब्दों को भी जोड़कर विद्यार्थियों को शिक्षित किया जाए, तभी राष्ट्रीय शिक्षा नीति के महत्व को रेखांकित किया जा सकेगा।उनका कहना था कि चुनौतियां काफी है लेकिन सुधार की आवश्यकता है।कबड्डी के खेल को उदाहरण के रूप में पेश करते हुए बताया कि किस तरह से कबड्डी का खेल पुनर्जीवन के सिद्धांत को सिखाता है।नई शिक्षा नीति के साथ सर्वे भवंतु सुखिन: को अपनाना होगा, तभी महत्व रेखांकित किया जाएगा।

फिल्म छावा की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि फिल्म में छत्रपति शिवाजी के स्वरूप को रेखांकित किया गया है।आज कितने लोग महाराज छत्रपति शिवाजी के स्वरूप को जानते हैं जिन्होंने सोच को बदलने के लिए धर्म को नहीं छोड़ा था।एक गंभीर बिंदु पर प्रकाश डालते हुए श्री तिवारी ने शिक्षा में आत्मीयता खत्म होने पर चिंता जाहिर की।

समाज को बढ़ाने में शिक्षा और शिक्षक का बहुत बड़ा योगदान : प्रो. श्रीवास्तव

इसी क्रम में प्रोफेसर ए.के. श्रीवास्तव ने कहा कि समाज को बढ़ाने में शिक्षा और शिक्षक का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसलिए भारतीय शिक्षा नीति में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भारतीय संस्कृति और विरासत के तत्वों को शामिल कर अपनाने की आवश्यकता है। आयोजन में भारतीय शिक्षण मंडल के प्रांत मंत्री अंबर व्यास ने भारतीय शिक्षा मंडल की कार्य गतिविधियों के बारे में जानकारी दी और बताया कि किस तरह से राष्ट्रीय शिक्षा नीति में संस्कृति के तत्व को जोड़ने के लिए या पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए प्रयास किया जा रहे हैं, तैयारी की जा रही हैं। इस संपूर्ण आयोजन में कार्यक्रम का संचालन डॉ. जया के द्वारा किया गया कार्यक्रम में सभी प्राध्यापक की उपस्थिति रही

डॉ. मुखर्जी ने बताया भारतीय संस्कृति एवं विरासत के अंतर संबंध का महत्व

महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. देवाशीष मुखर्जी ने सभी आगंतुक अतिथियों का परिचय कराया और राष्ट्रीय शिक्षा नीति और भारतीय संस्कृति एवं विरासत का अंतर संबंध के महत्व को प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में नई शिक्षा नीति पर अध्ययन की प्रक्रिया आरंभ हो गई है।ऐसे में संस्कृति को भी नहीं भूलना चाहिए और पढ़ाई करने के दौरान विद्यार्थियों को शिक्षित किया जाना चाहिए।